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Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी

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Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी

मानवता के इतिहास में रेबीज के टीके की खोज को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जाता है, क्योंकि रेबीज मानव के ज्ञात इतिहास में सबसे प्राचीन बीमारी मानी जाती है। प्राचीन गुफाओं में मिले कई भित्ति चित्रों में भी इस बीमारी से संबंधित चित्रण मिले हैं।


1885 में जिस समय इस बीमारी से बचने के लिए टीके की खोज हुई उस समय दुनिया की कुल आबादी 150 करोड़ थी और सालाना करीब एक करोड़ लोग रेबीज के शिकार होते थे। रेबीज के टीके ने आज तक ना जाने कितने लोगों की जान बचाई होगी हालांकि हालांकि रेबीज होने के बाद उसका कोई इलाज मौजूद नहीं है लेकिन किसी पागल जानवर के काटने के तुरंत बाद से लेकर 3 दिनों के भीतर रेबीज का टीका करण हो जाए तो रेबीज हो ही नहीं पाता।

मानव और मानवता के लिए इस इलाज की खोज किसी महान कार्य से कम नहीं थी पर जिसने इस बीमारी का इलाज खोजा उसने अपना पूरा जीवन इस खोज को समर्पित कर दिया। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी ) जिस वक्त वह टीके की खोज में लगे थे उसी वक्त इनकी तीन बेटियों में से दो की मौत ब्रेन ट्यूमर से और एक ही टाइफाइड से हो गई। इसके बावजूद यह अपने अनुसंधान कार्य में लगे रहे। इस महान वैज्ञानिक का नाम है लुई पाश्चर

Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी

Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी

नाम लुई पाश्चर { फ़्रांसिसी चिकित्साविद और वैज्ञानिक }
जन्म 27 दिसम्बर 1822 { डोलेफ़्रांश-कोम्तेफ्रांस }
मृत्यु सितम्बर 28, 1895 ( उम्र 73 )
कार्य क्षेत्र क्षेत्र: रसायन शास्त्र, सूक्ष्म जीव शास्त्र
पुरस्कार-उपाधि लीवेनहोएक मेडल, मान्ट्यान पुरस्कार ,कापली मेडल ,रमफ़र्ड मेडल, अलबर्ट मेडल
सम्मान लुई पास्चर के सम्मान मे ही दूध को 60 डीग्री सेल्सीयस तक गर्म कर कीटाणु रहित करने की
प्रक्रिया को ’पास्चराइजेशन’ कहते है।

 इस आर्टिकल में हम लुई पाश्चर के जीवन की कहानी जानेंगे कि कैसे एक बच्चा जिसे सब मंदबुद्धि कहकर उसका मजाक उड़ाते थे उसने सदी की सबसे बड़ी खोज करके अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। (Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई पाश्चर का प्राम्भिक जीवन

यह कहानी है। 1822 की फ्रांस के गांव में चमड़े की एक निर्धन व्यापारी की दिली तमन्ना थी ,कि अगर उसे अच्छी शिक्षा मिली होती ,तो वह भी एक बड़े से कंपनी में बैठकर हुकुम चला रहा होता ,ना कि यहां मरे हुए जानवरों का बदबूदार चमड़ा साफ कर रहा होता। उस निर्धन व्यापारी के मन में अक्सर यह बात आया करती थी।

कुछ समय बाद उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई वह व्यापारी बड़ा खुश हुआ, उसने सोचा कि भले ही वह न पढ़ लिख पाया हो लेकिन अपने बेटे को जरूर वह अच्छी से अच्छी शिक्षा देगा। उस बच्चे का नाम रखा गया लुई पाश्चर। लुई जब 5 वर्ष का हुआ तब उसके पिता ने अपनी निर्धन स्थिति को ना देखते हुए लुई को एक बड़े से स्कूल में दाखिल कराया। लेकिन उस वक्त लुई के पिता को बहुत दुख हुआ जब उन्होंने देखा कि लुई पढ़ाई में बेहद कमजोर है। स्कूल में लुई के अन्य साथी उसे मंदबुद्धि कहकर उसका मजाक उड़ाते थे। (Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई पाश्चर का पहली बार रेबीज से सामना

वैसे तो लुई बचपन से ही बड़े मेहनती थे ,वे स्कूल के साथ अपने पिता के काम में भी मदद करते। लुई जिस गांव में रहते थे वह जंगल से लगा हुआ था, और उस जंगल में बहुत से जंगली भेड़िए रहा करते थे। एक बार एक पागल भेड़िए ने गांव में घुसकर कई लोगों पर हमला कर दिया।

हालांकि गांव वालों ने उस भेड़ियों को तो मार दिया लेकिन उसने 8 लोगों को काट लिया था। उन 8 लोगों में से 5 लोगों को अगले कुछ दिनों में ही रेबीज हो गया। और उनकी हालत उस पागल भेड़िए की तरह हो गई वह सभी अजीब तरह की हरकतें करने लगे , पानी को देखकर डरने लगे। कुछ दिनों में ही इन पांचों की तड़प तड़प कर मौत हो गई। जब लुई ने अपनी छोटी सी उम्र में यह सब देखा तो उनके मन में इसका बड़ा गहरा असर हुआ। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई इनकी मदद करना चाहते थे ,लेकिन लुई तो क्या इनकी मदद दुनिया का बड़े से बड़ा डॉक्टर भी नहीं कर सकता था। क्योंकि रेबीज यानी हाइड्रोफोबिया पूर्ण रूप से लाइलाज बीमारी थी। गांव के लोगों के लिए तो यह कोई नई बात नहीं थी, लेकिन लुई ने यह सब पहली बार देखा था। वह अपने पिता से हमेशा सवाल करता कि आखिर उन लोगों को क्यों नहीं बचाया जा सका ? लुई के बार-बार के सवालों से तंग आकर पिता ने कहा। ……

तुम खुद ही इस बीमारी का इलाज क्यों नहीं खोजते यदि तुमने दिल लगाकर पढ़ाई की तो बेशक तुम इसका इलाज खोज लोगे। पिता की है बात उनके दिमाग में अंदर तक बैठ गई उन्होंने सोचा यदि पढ़ाई करने से इस लाइलाज बीमारी का इलाज खोजा जा सकता है तो मैं खूब मन लगाकर पढ़ाई करूंगा और लोगों को मरने नहीं दूंगा। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई पाश्चर की शिक्षा

अब लुइ ने मन लगाकर अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की। आगे की पढ़ाई के लिए उनके पिता ने बड़ा कर लिया और लुई को पेरिस भेजा। पेरिस में लुई ने रसायन शास्त्र की पढ़ाई प्रारंभ की , बाद में भौतिकी भी पड़ा इन्होंने विज्ञान के हर क्षेत्र में अध्ययन किया। 1942 में यह भौतिकी के अध्यापक बन गए लेकिन इन्होंने दूसरों को पढ़ाने के साथ-साथ अपना अध्ययन भी जारी रखा और जीव विज्ञान को समझने का प्रयास किया।

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लुई पाश्चर के शुरूआती प्रयोग

जीव विज्ञान की अपने प्रयोगों में उन्होंने पाया कि लगभग हर खाने के पदार्थ में छोटे छोटे जीव होते हैं। और यह जीव इतने छोटे होते हैं कि इन्हें नग्न आंखों से देख पाना संभव नहीं है। इन जीवो को जीवाणु का नाम दिया गया। इनके प्रयोगों से पहले इन छोटे जीवो के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी। (Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

लुई ने अपने अध्ययन में पाया की इन जीवाणुओं के कारण ही खाने पीने की वस्तुएं जल्दी खराब हो जाती है। इन्होंने अब जीवाणुओं पर प्रयोग करना प्रारंभ किया जिस पर यह बात सामने आई कि यह जीवाणु अधिक तापमान बर्दाश्त नहीं कर पाते और उच्च तापमान पर यह जीवाणु मर जाते हैं।

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लुई पाश्चर और पाश्चराइजेशन

अपने प्रयोगों मैं लुई ने दूध को 75 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया और तुरंत ठंडा किया। तो पाया कि गर्म करके ठंडा करने पर सभी जीवाणु मर गए और दूध पहले की तरह जल्दी खराब नहीं हुआ। क्योंकि दूध इन्ही जीवाणुओं के कारण ही जल्दी खराब हो जाता था। इन के इस प्रयोग को ही लुई पाश्चर का पाश्चराइजेशन प्रयोग कहां गया।

लुई पाश्चर द्वारा रेबीज के वायरस की खोज करना

इसके बाद लुई के मन में यह बात आई कि जिस तरह यह जीवाणु खाद्य पदार्थ को खराब करते हैं ,उसी प्रकार हमारे शरीर में भी यह जीवाणु पाए जाते हो , जिसके कारण हम बीमार होते हैं और संभवत रेबीज के लिए भी यही जीवाणु जिम्मेदार हो। उन्होंने सोचा कि यदि वे इस जीवाणु की पहचान कर लेते हैं और उसे खत्म कर दें तो दुनिया में कितने ही लोगों को तड़पकर मरने से बचाया जा सकता है। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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फिर क्या था लुई ने रात दिन एक कर जहां भी रेबीज हो चुके जानवरों की खबर मिलती, वहां पहुंच जाते और खुद को जोखिम में डालकर उस जानवर का ब्लड सैंपल लेते। मानवता को बचाने उन्होंने अपनी जिंदगी पागल कुत्तों को पकड़ते हुए समर्पित कर दी। अपने प्रयोगों में उन्होंने रेबीज के वायरस की पहचान कर ली। उन्होंने पाया कि जानवरों की लार में भी यह वायरस होता है।

जैसे ही संक्रमित जानवर किसी व्यक्ति या अन्य जानवर को काटता है तो उसके लार के माध्यम से रेबीज का वायरस काटे गए व्यक्ति में फैल जाता है। लुई के सामने अब यह समस्या थी कि शरीर के भीतर पहुंच चुके वायरस को खत्म कैसे किया जाए अब दूध की तरह तो शरीर को उबाला नहीं जा सकता था ।

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लुई पाश्चर द्वारा मुर्गियों पर प्रयोग

लुई पाश्चर को शरीर के अंदर रोगों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता के बारे में तो पता था। पर वे समझ नहीं पा रहे थे की यह क्षमता रेबीज के वायरस में क्यों काम नहीं आती। उसी वक्त उनके एक दोस्त ने मुर्गियों में फैले हैजा जैसे रोग के बारे में बताया इस रोग से एक-एक करके सारी मुर्गियां मर रही थी।

अब लुइ पाश्चर ने अपने प्रयोग इन मुर्गियों में करने शुरू कर दिए उन्होंने पाया कि कुछ जीवाणु या विषाणु हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता से छुपकर अपना कार्य करते हैं। और जब हमारा इम्यून सिस्टम ऐसे वायरस को पहचान ही नहीं कर पाता तो इन्हें नष्ट कैसे करेगा। लेकिन यदि हमारी इम्यून सिस्टम को उस वायरस से पहचान करा दी जाए तो वह इस वायरस को नष्ट कर सकता है। पर यह सब कैसे हो यही बात सोचते सोचते लुइ पाश्चर ने खाना सोना तक छोड़ दिया। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लगातार प्रयोगों से आखिरकार इन्हें सफलता मिली इन्होंने मर चुकी संक्रमित मुर्गियों के रक्त से यह वायरस निकाला और एक खास तरह के लवण में डाला इस लवण के प्रभाव से यह वायरस निष्क्रिय हो गए। अब इन निष्क्रिय वायरस को इन्होंने जीवित मुर्गियों में इंजेक्ट किया इसके नतीजे हैरान कर देने वाले थे। जिन मुर्गियों को यह निष्क्रिय वायरस का इंजेक्शन दिया गया उन्हें आगे चलकर कोई बीमारी नहीं हुई जबकि बिना इंजेक्शन लगाए मुर्गी या वैसे ही मर रही थी।

इस प्रयोग से यह बात सिद्ध हो गई कि निष्क्रिय किये वायरस की कुछ मात्रा शरीर में डाली जाए और इन वायरस की पहचान हमारे रोग प्रतिरोधक क्षमता से करा दी जाए तो हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम उस रोग से लड़ने में सक्षम हो जाता है। 

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लुई पाश्चर द्वारा कुत्ते पर प्रयोग

 मानवता के इतिहास में यह खोज बहुत बड़ी थी। इसी सिद्धांत को आधार मानकर आने वाले कई दशकों तक प्राण घातक बीमारियों का उपचार खोजा गया। इस खोज के बाद लुइ पाश्चर ने रेबीज के वायरस पर काम करना शुरू किया। उन्होंने रेबीज के वायरसों को निष्क्रिय कर एक स्वस्थ कुत्ते को इसका इंजेक्शन लगाया।

बाद में इस कुत्ते की रोग प्रतिरोधक क्षमता ने इस वायरस की पहचान कर ली और उसे नष्ट करने की शक्ति इजात कर ली। और जब उस कुत्ते में सक्रिय वायरस डाले गए तो उसे रेबीज का संक्रमण नहीं हुआ और वह पूरी तरह स्वस्थ रहा लुई पाश्चर का यह प्रयोग बेहद सकारात्मक रहा। इसलिए लुई काफी खुश और उत्साहित थे। लेकिन यह प्रयोग मानव शरीर पर भी सकारात्मक भूमिका निभाएगा या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं थी। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई पाश्चर द्वारा एक बच्चे पर प्रयोग

इन प्रयोगों के दौरान ही एक बार एक महिला अपने बच्चे को रोते हुए लेकर आई। और बताया कि इसे रेबीज से संक्रमित पागल कुत्ते ने काटा है। और हर घंटे इस बच्चे की हालत बिगड़ रही है। लुई ने जांच में पाया कि वह बच्चा भी रेबीज का शिकार हो चुका था।

हालांकि लुई ने अपने प्रयोगों को सफलतापूर्वक एक कुत्ते पर आजमा लिया था किंतु किसी इंसान पर इस इलाज को आजमाना किसी जोखिम से कम नहीं था। निष्क्रिय वायरस का मानव शरीर में क्या असर होता इसकी कोई जानकारी लुई को नहीं थी। उस बच्चे की मां अपने बच्चे को बचाने लगातार भीख मांग रही थी , लेकिन उनकी यह खोज शुरुआती दौर में ही थी और यदि मानव शरीर में उसका कोई गलत असर होता और बच्चे की हालत बिगड़ती तो सारा दोष लुई पाश्चर पर ही आ जाता। (Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

और उन्हें जेल या सामाजिक बहिष्कार का सामना भी करना पड़ता। लेकिन वैक्सीन न लगाने पर भी बच्चे की मौत तय थी इसलिए लुइ पाश्चर ने उस बच्चे का इलाज करना ही सही समझा। उन्होंने शुरुआत में बहुत कम मात्रा में निष्क्रिय रेबीज वायरस उस बच्चे पर इंजेक्ट किए फिर प्रतिदिन वो इसकी डोज़ बढ़ाते जाते और 21 दिनों तक इन्होंने लगातार यह निष्क्रिय वायरस का इंजेक्शन उस बच्चे को लगाया । आखिरकार उन्हें आश्चर्यजनक सफलता मिली उस बच्चे को रेबीज नहीं हुआ और उनका यह अनुसंधान सफल रहा।

लुई पाश्चर को सम्मान

लुई पाश्चर की खोज ने मेडिकल साइंस के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। और करोड़ों लोगों को इस लाइलाज बीमारी से बचाया था इस महान उपलब्धि के बाद फ्रांस की सरकार ने इन्हें सम्मानित किया और उनके नाम से पाश्चर संस्थान की स्थापना की।

लुई पाश्चर का निजी जीवन

समाज की भलाई की धुन में इनका निजी जीवन पूरी तरह बिखर गया। इनकी तीन बेटियों की असमय मृत्यु के बाद इनकी पत्नी मानसिक रोग का शिकार हो गई कुछ समय बाद लुई पाश्चर का आधा शरीर लकवा ग्रस्त हो गया ,लेकिन इन हालातों में भी इन्होंने अपना अनुसंधान कार्य जारी रखा। ( Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी )

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लुई पाश्चर की मृत्यु

1895 में 73 वर्ष की आयु में लुई पाश्चर की मृत्यु हो गई। इनके द्वारा की गई खोज मानव जीवन की इतिहास में की गई खोजों में महानतम खोज कहलाई क्योंकि इनकी खोज के बाद ही अन्य कई बीमारियों के टीके बनाए गए और आज भी बनाए जा रहे हैं। लुई पाश्चर ने चिकित्सा के क्षेत्र में इस मानव जाति को एक अनोखा उपहार दे दिया था चिकित्सा जगत में उनकी इस उपलब्धि और इस महान योगदान के लिए लुइ पाश्चर का नाम दुनिया में हमेशा याद रखा जाएगा।

Louis Pasteur Biography in Hindi | लुई पाश्चर की जीवनी

लुई पाश्चर, (Louis Pasteur) कौन थे ?

लुई पाश्चर, (Louis Pasteur) एक फ़्रांसिसी चिकित्साविद और वैज्ञानिक थे जिन्होंने अपनी वैज्ञानिकों खोजो के द्वारा बीमारी के दौरान घाव उत्पन्न होने की स्थिति में जो असहनीय पीड़ा होती है उससे मुक्ति दिलाकर एक बड़ी मानव सेवा ही की थी। 19वी शताब्दी के जिन विशिष्ठ वैज्ञानिकों में उन्हें गिना जाता है।

लुई पाश्चर ने किसकी खोज की

लुई पॉश्चर ने 6 जुलाई, 1885 में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली वायरस जनित बीमारियों के लिए दुनिया का पहला टीका (रेबीज) विकसित किया था। टीका विकसित करने में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘फादर ऑफ माइक्रोबॉयोलॉजी’ भी कहा जाता है।

लुई पाश्चर का जन्म कब हुआ ?

लुई पाश्चर की मृत्यु कब हुई ?

सितम्बर 28, 1895 ( उम्र 73 )

What vaccines did Pasteur invent?

He developed the earliest vaccines against fowl cholera, anthrax, and rabies. Louis Pasteur (1822–1895) is revered by his successors in the life sciences as well as by the general public…

इस आर्टिकल को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद हम ऐसे ही विषयों पर अपने तरह-तरह के आर्टिकल लाते रहते हैं।

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