The Kashmir Files (द कश्मीर फाइल्स) – जिसने घाटी के दर्द को फिर से ताज़ा कर दिया !
19 जनवरी 1990 का दिन कश्मीर के इतिहास का सबसे काला अध्याय था। उस वक्त सड़कों में नारे लग रहे थे , कि यदि कश्मीर में रहना है तो अल्लाहहू अकबर कहना है।
बरसों से अपने पूर्वजों की जमीन में रह रहे कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से धक्के मारकर बेदखल किया जा रहा था। यदि कोई उनकी बात से इनकार करता तो उसे गोलियों से भून दिया जाता। 1990 के समय तक कश्मीर में लगभग 75,000 कश्मीरी पंडित परिवार रहते थे लेकिन साल 1990 से 1992 के बीच लगभग 70000 से अधिक कश्मीरी पंडितों ने आतंक के डर से कश्मीर से पलायन कर लिया। The Kashmir Files (द कश्मीर फाइल्स) – जिसने घाटी के दर्द को फिर से ताज़ा कर दिया !
हाल ही में आई फिल्म द कश्मीर फाइल्स 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों की ऐतिहासिक पलायन की घटना पर ही आधारित है।
आइए जानते हैं कश्मीर फाइल्स और उस वक्त से जुड़े कुछ बातें जिन्हे जानकर आपका दिल रो उठेगा।
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कश्मीर फाइल्स – पलायन या नरसंहार
कहा जाता है कि कश्मीरी पंडितों को कश्मीर से हटाने के लिए उनका खुलेआम नरसंहार किया गया और पंडितों को कश्मीर ना छोड़ने के लिए जबरजस्ती उनका धर्म परिवर्तन किया गया , जिसमें उन्हें बीफ खिलाया जाता ताकि उनका धर्म भ्रष्ट हो सके।
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जिस मिट्टी में आपने जन्म लिया और जिस घर में आपका बचपन बीता , उस मिट्टी और उस घर को हमेशा के लिए छोड़ कर जाना पड़े , और अपने ही वतन में गैर नागरिक की तरह जीना पड़े इस दर्द का जिक्र करना तो आसान है ,पर उसे सहन करना उतना ही मुश्किल।
द कश्मीर फाइल्स उस दर्द को झेल चुके लोगों की सच्ची कहानियों पर आधारित है इस फिल्म के मुताबिक यह पलायन केवल पलायन नहीं बल्कि एक बर्बर नरसंहार था जिसे राजनीतिक कारणों से दबा दिया गया। कश्मीर से अपनी जान बचाकर भागे कश्मीरी पंडित तीन दशकों से अपने खुद के मुल्क में निर्वासित जीवन जीने मजबूर है। कश्मीर में उनके घरों और दुकानों में स्थानीय लोगों ने कब्जा कर लिया। The Kashmir Files (द कश्मीर फाइल्स) – जिसने घाटी के दर्द को फिर से ताज़ा कर दिया !
कश्मीरी पंडितों को आज भी न्याय की आश
कश्मीरी पंडित आज भी अपने न्याय की आस लगाए बैठे हैं। जिस कश्मीर में कभी 70000 से अधिक कश्मीरी पंडित परिवार रहा करते थे वहां आज केवल 800 हिंदू परिवार ही बचे हैं।
अपनी मातृभूमि और कर्मभूमि से विस्थापित कश्मीरी पंडितों के इस दर्द को व्यापक रिसर्च के बाद रुपहले पर्दे पर पेश किया जा रहा है। इस फिल्म ने एक बार फिर से कश्मीरी पंडितों के पलायन की घटना को तरोताजा कर दिया।
आतंक की शुरुआत
1981-82 मैं जब राज्य में आतंकवाद शुरू हुआ, उसके बाद से ही पंडितों के खिलाफ एक अभियान शुरू हो गया। 1986 में शिवरात्रि के दिन दंगों की शुरुआत हुई जिसमें मंदिर जलाए गए पंडितों के घरों में पत्थर फेंके गए। The Kashmir Files (द कश्मीर फाइल्स) – जिसने घाटी के दर्द को फिर से ताज़ा कर दिया !
उसके बाद ही कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और आईएसएल ने 1987 में एक आकलन करवाया जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के कर्मचारियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या का आकलन किया गया , और फिर पंडितों के खिलाफ ऐसी घटनाएं बढ़ने लगी।
14 मार्च 1989 को एक बम ब्लास्ट में कलावती नाम की महिला घायल हुई जिसे अस्पताल ले जाया गया लेकिन हिंदू होने के कारण उसका इलाज नहीं किया गया और अधिक रक्त बहने के कारण उसकी मौत हो गई। इसके बाद 14 सितंबर को हिंदू नेता टीका लाल टपलू की हत्या कर दी गई। तभी से कश्मीरी पंडितों में डर भर गया।
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मस्जिदों में पर्ची से तय होता था मरने वाले पंडित का नाम
उस समय टीवी पर केवल दूरदर्शन ही चलता था 19 जनवरी 1990 को दूरदर्शन पर हमराज फिल्म आ रही थी , इसी बीच मस्जिदों से ऐलान किया गया कि कश्मीरी पंडित घर छोड़कर चले जाएं वरना उन्हें मार दिया जाएगा। 1 घंटे में ही पूरे कश्मीर में पंडितों के खिलाफ आग फैल गई और कश्मीर की सड़कों पर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम शुरू हो गया।
धीरे-धीरे पंडितों की हत्या और पलायन का यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा। उस समय मस्जिदों में कश्मीरी पंडितों के नामों की पर्ची निकाली जाती थी और उनके नाम तय करके उनकी हत्या कर दी जाती थी कश्मीर फाइल्स को बनाने में करीब 700 कश्मीरी पंडितों के परिवारों से बात की गई, जिन्होंने सीधे तौर पर कश्मीर के इस दर्दनाक हिंसा को झेला है और आज भी उस दर्द के साथ जी रहे हैं।
कश्मीरी पंडितों के दर्द को समझने के लिए आप भी जरूर देखें The Kashmir Files (द कश्मीर फाइल्स) – जिसने घाटी के दर्द को फिर से ताज़ा कर दिया !
इस आर्टिकल में बस इतना ही यह सब पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
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