Mahatma Gandhi Biography in Hindi भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनो में एक प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्व के रूप में महात्मा गांधी का नाम सबसे आगे रहता है।
महात्मा गांधी जिनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद्र गांधी है ! इन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अपना अमूल्य योगदान दिया ,और अपना पूरा जीवन देश को आजादी दिलाने के लिए कुर्बान कर दिया।
महात्मा गांधी आजादी के इस आंदोलन में केवल अहिंसा के सिद्धांत पर चलते रहे और इसी अहिंसा के सिद्धांत पर उन्होंने देश को अंग्रेजों की 200 वर्षों की गुलामी से आजाद कर दिया।
दक्षिण अफ्रीका में प्रवासी वकील के रूप में नागरिक अधिकारों के लिए शुरू किए सत्याग्रह से लेकर भारत को आजादी दिलाने तक महात्मा गांधी ने सभी परिस्थितियों में सत्य और अहिंसा का पालन किया ! और इसी कारण प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर , महात्मा गांधी के जन्म दिवस के रूप में गांधी जयंती और पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
आइए जानते हैं इस लेख ( Mahatma Gandhi Biography in Hindi ) में ! कैसा रहा महात्मा गांधी के जीवन का प्रारंभ से लेकर अंत तक का सफर और देश को आजाद करने के लिए महात्मा गांधी को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।
Table of Contents
प्रारंभिक जीवन ( महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन )
महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। इनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के तटीय नगर पोरबंदर में हुआ। इनके पिता का नाम करमचंद गांधी था , जो सनातन धर्म की पंसारी जाति के थे। करमचंद गांधी अंग्रेजी शासन के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत पोरबंदर के दीवान थे Mahatma Gandhi Biography in Hindi
इनकी माता का नाम पुतलीबाई था। पुतलीबाई करमचंद की पहली पत्नी नहीं थी यह इनकी चौथी पत्नी थी जिनसे मोहनदास का जन्म हुआ। गांधी जी की माता पुतलीबाई बहुत ही धार्मिक महिला थी जिसके कारण महात्मा गांधी पर ही इनकी धार्मिकता का बहुत प्रभाव पड़ा। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
विवाह ( महात्मा गांधी का विवाह )
वर्ष 1883 में मात्र 13 वर्ष की आयु में ही इनका विवाह अपने से 1 वर्ष बड़ी कस्तूर बाई मनकजी से कर दिया गया बाद में इनकी पत्नी का नाम कास्तूरबा कर दिया गया। गांधी जी का यह विवाह उनके माता-पिता द्वारा कराया गया बाल विवाह था जो उस समय प्रचलित था। गांधी जी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi
जब गांधी जी की उम्र केवल 15 वर्ष थी तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया लेकिन वह कुछ दिन ही जीवित रही , फिर बाद में मोहनदास गांधी और कस्तूरबा के 4 पुत्र हुए जिनके नाम हरीलाल गांधी ,मणिलाल गांधी ,रामदास गांधी और देवदास गांधी था।
सन 1885 में जब महात्मा गांधी 15 वर्ष के थे तभी इनके पिता करमचंद गांधी का देहांत हो गया।
प्रारंभिक शिक्षा ( महात्मा गांधी की प्रारंभिक शिक्षा )
प्रारंभिक शिक्षा में उन्होंने पोरबंदर से मिडिल और राजकोट से हाईस्कूल किया ,इन दोनों परीक्षाओं में उनका शैक्षणिक स्तर एक सामान्य छात्र जितना ही था। फिर मैट्रिक के बाद गांधी जी ने भावनगर के शामलदास कॉलेज से मैट्रिक के बाद की परीक्षा पास की। गांधी जी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi
उनका परिवार गांधी जी को बैरिस्टर बनाना चाहता था लेकिन गांधीजी इस बात से प्रसन्न नहीं थे।
विदेश में शिक्षा और नौकरी
वर्ष 1888 की तारीख 4 सितंबर को गांधीजी यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में अपनी कानून की पढ़ाई करने के लिए और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए। इंग्लैंड यात्रा के दौरान अपने माता से किए गए वादे के अनुसार इन्होंने कभी मांस और शराब को हाथ नहीं लगाया और बौद्धिकता से शाकाहारी भोजन को अपना भोजन स्वीकार किया।
इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई के बाद वे भारत लौट आए और मुंबई में अपनी वकालत शुरू की ! लेकिन इसमें उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। भारत लौटने के बाद उन्हें अपनी वकालत करने में बहुत परेशानी हुई ,और इसी कारण जब उन्हें 1893 में कानूनी सेवाएं देने का मौका मिला ! तो वे भारतीय मूल के व्यापारी दादा अब्दुल्ला से 1 वर्ष का करार करके दक्षिण अफ्रीका के डरबन की ओर रवाना हो गए।
दक्षिण अफ्रीका जो इस समय तक ब्रिटिश साम्राज्य के अंदर ही आता था।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का सफर
दक्षिण अफ्रीका आने के बाद ही महात्मा गांधी को भारतीयों पर होने वाले भेदभाव का सामना करना पड़ा। यहाँ की ट्रेन में प्रथम श्रेणी यात्रा के दौरान प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बाद भी तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने के लिए इन्हें कहा गया जिस पर इन्होंने इंकार कर दिया ! और इस पर पुलिस वालों ने इन्हें ट्रेन के डिब्बे से बाहर फेंक दिया।
इतना ही नहीं शेष यात्रा के दौरान ट्रेन चालक की मार भी खानी पड़ी इस यात्रा में उन्हें बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में कई होटलों को भारतीयों के लिए वर्जित कर दिया गया था जिसके कारण महात्मा गांधी को भी होटलों की कीमत चुकाने के बाद भी कहीं जगह नहीं मिल रही थी।
इस तरह से अपनी इस दक्षिण अफ्रीका की यात्रा में उन्हें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ऐसी ही कई घटनाओं में से एक घटना यह थी ! कि जब उन्होंने वहां की अदालत में प्रवेश किया तो अदालत के न्यायाधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने के लिए कहा जिस पर उन्होंने मना कर दिया और इन्हें अदालत से बाहर निकाल दिया गया।
यही सारी घटनाएं गांधीजी के जीवन के लिए एक मोड़ बन गई और भारतीयों के लिए समाज में विद्यमान अन्याय के प्रति जागरूकता का कारण बनी। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए इस अंग्रेजी शासन के अंतर्गत अपने देश के लोगों के सम्मान तथा अपने देश की स्थिति के लिए कई प्रश्न उठाए।
यहां की होती हुई इन घटनाओं से गांधी जी बहुत ज्यादा आहत हुए और उन्होंने यहां की लोगों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने का निर्णय लिया ! और इसीलिए महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की रणनीति विकसित की जिसमें आंदोलन करने वाले लोग शांतिपूर्वक जुलूस निकालते हैं ! और अन्याय पूर्व कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए खुद को गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत करते हैं।
यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए महात्मा गांधी ने कुछ और भी कार्य किए जिसमें 1903 में इंडियन ओपिनियन नाम का एक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया 1904 में दक्षिण अफ्रीका के डरबन में फीनिक्स आश्रम का निर्माण किया और यहीं पर ही 1996 गांधी जी का पहला सत्याग्रह हुआ।
महात्मा गाँधी का भारत आगमन
दक्षिण अफ्रीका से 1915 में गांधीजी वापस भारत आ गए। महात्मा गांधी का भारत में आगमन वर्ष 1915 की 9 जनवरी को हुआ आज हम इसी कारण इस दिन को प्रवासी दिवस के रूप में मनाते हैं। 1915 में गांधी जी के भारत लौटने के बाद भारत में उनका राजनैतिक जीवन का प्रारंभ हुआ।
यहां पर उन्हें गोपाल कृष्ण गोखले जैसे अनुभवी राजनीतिक नेताओं का साथ प्राप्त हुआ। गोपाल कृष्ण गोखले को ही महात्मा गांधी का राजनैतिक गुरु माना जाता है। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
गांधी जी के भारत लौटने के बाद का एक वर्ष गोखले जी के कहने पर ही ईयर ऑफ प्रोवेशन समझने के लिए कहा गया जिसका मतलब था ! की पहली बार भारत की सभी परिस्थितियों से अवगत होना और चीजों को विस्तार से समझना ! उसके बाद ही भारत की राजनीति में उतरना गांधीजी के लिए सही होगा।
1916 में गांधी जी ने गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती के किनारे अपने रहने के लिए साबरमती आश्रम का निर्माण किया। इस दौरान महात्मा गांधी को देश में भी लोगों द्वारा धीरे धीरे पहचाना जाने लगा। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी द्वारा किए गए सत्याग्रह के कारण हमारे देश में भी गांधीजी के सत्याग्रह की चर्चा थी।
वर्ष 1916 में गांधी जी ने कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लिया और यहीं पर गांधी जी से मिलने राजकुमार शुक्ल आए जो बिहार के चंपारण से ताल्लुक रखते हैं। राजकुमार शुक्ल ने महात्मा गांधी को बिहार के चंपारण में किसानों के साथ हो रहे अन्याय की पूरी जानकारी दी और गांधीजी को चंपारण आने का निमंत्रण भी दिया।
और यहीं से भारत में गांधी जी के सत्याग्रह और आंदोलन की शुरुआत हुई।
गांधीजी का चंपारण सत्याग्रह 1917
दक्षिण अफ्रीका में किए गए सत्याग्रह को प्रयोग के रूप में गांधी जी ने पहली बार बिहार के चंपारण में शुरू किया। चंपारण की यह परेशानी 19वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही शुरू हो चुकी थी जो अभी तक चल रही थी।
यहां पर नील के खेतों पर काम करने वाले किसानों पर अंग्रेजी शासक बहुत अधिक अत्याचार करते थे किसानों को किसी भी हाल में अपनी जमीन के कम से कम 3/20 भाग पर नील की खेती करनी पड़ती थी। और उन्हें वहां के मालिकों द्वारा तयशुदा दामों पर ही बेचना पड़ता था।
जिसके कारण कभी-कभी तो नील की खेती के लिए खाद्यान्नों का उत्पादन नहीं हो पाता था और किसान मर रहे थे। गांधीजी के चंपारण आने के बाद कई किसानों ने मिलकर गांधी जी से अपने ऊपर होने वाले सभी अत्याचारों की कहानी सुनाई और उनसे सहायता की मांग की। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
1917 में यहां पर महात्मा गांधी के साथ बाबू राजेंद्र प्रसाद ,मजहर उलहक , जे बी कृपलानी और महादेव देसाई ने मिलकर किसानों की हालत पर विस्तृत जांच पड़ताल की।
इस दौरान जिले के अधिकारियों ने महात्मा गांधी को चंपारण छोड़ने का आदेश दिया और आदेश के उल्लंघन के बाद उन्हें जेल में डाल दिया। गांधीजी के सत्याग्रह और जेल में जाने के बाद यहां के किसानों ने इसका पुरजोर विरोध किया और धरने पर उतर आए। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
जिसके कारण अंग्रेजी शासन को गांधी जी को बिना किसी शर्त पर रिहा करना पड़ा और किसानों पर होने वाले अत्याचार के लिए अपना आदेश रद्द कर दिया। और एक जांच कमेटी बैठाई जिसके सदस्य महात्मा गांधी भी थे।
अंततः किसानों की समस्याओं में कमी हुई और खेत मालिकों के साथ हुए समझौते के तहत गलत तरीकों से किसानों से लिए हुए धन का 25% पुनः वापस करने की बात तय हुई और इस तरह गांधी जी ने अपने सत्याग्रह की पहली लड़ाई जीत ली।
अहमदाबाद मिल हड़ताल 1918
गांधी जी के इस आंदोलन का प्रमुख कारण यहां के मिल मालिकों और मजदूरों के बीच प्लेग बोनस विवाद था।
1917 में अहमदाबाद में एक रोग फैल गया जिसका नाम प्लेग था। इस कारण से यहां के मजदूरों ने पलायन करना शुरू कर दिया और इन्हें रोकने के लिए मिल मालिकों ने मजदूरों को प्रतिमाह प्लेग बोनस देना शुरू कर दिया। बाद में बीमारी में कुछ कमी आने पर मालिकों ने इस बोनस को बंद कर दिया।
लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के बाद बढ़ी हुई महंगाई के कारण मजदूर इसे मासिक वेतन में ही जोड़ने की मांग करने लगे जो मिल मालिकों को ना मंजूर था। और इसी कारण यह विवाद हुआ।
महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह की सफलता के बाद अनुसूया बहन साराभाई ने महात्मा गांधी को इस आंदोलन के लिए आमंत्रित किया। आंदोलन शुरू होने के बाद अहमदाबाद मिल मालिकों ने इस आंदोलन को समाप्त करने हेतु मजदूरों को 20% वेतन वृद्धि की पेशकश की लेकिन मजदूर 50 परसेंट के वेतन वृद्धि की मांग पर अड़े रहे।
जिस पर मिल मालिकों ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया और इसी कारण महात्मा गांधी मजदूरों के साथ मिलकर 21 दिन के आमरण अनशन पर बैठ गए। अंत में मामले की गंभीरता को देखते हुए मिल मालिकों ने न्यायालय में जाने का फैसला किया। न्यायालय ने भी गांधीजी के सुझाव पर मजदूरों के वेतन पर 35 % की मांग को स्वीकार कर लिया और इस तरह महात्मा गांधी का यह आंदोलन भी सफल रहा।
खेड़ा सत्याग्रह 1918
बिहार के चंपारण में हुए सत्याग्रह के बाद गांधी जी ने खेड़ा के किसानों की तरफ भी ध्यान दिया। उन्होंने यहां के किसानों को एकत्रित किया ! और सरकार के अत्याचार के खिलाफ सत्याग्रह करने के लिए किसानों को तैयार किया।
यहां के किसानों ने में गांधीजी का पूरी तरह से साथ दिया। किसानों ने अंग्रेजों को लगान देना बंद कर दिया और जो किसान लगान देने के लायक थे उन्होंने भी लगान देना बंद कर दिया। इस पर अंग्रेजी सरकार बहुत शक्ति से पेश आई , और दंड की धमकियां दी। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
किसानों ने बिना डरे इस आंदोलन को शुरू किया और बड़ी संख्या में इस आंदोलन में किसानों ने भाग लिया। कई किसानों को तो जेल में भी डाल दिया गया। जून 1918 तक खेड़ा आंदोलन एक व्यापक रूप ले चुका था ,अंग्रेजी शासन ने किसानों के इस गुस्से और निडर भाव को देखते हुए किसानो के सामने झुकना ही सही समझा। और सरकार ने किसानों को लगान में कुछ छूट देने का वादा भी किया।
इस आंदोलन के दौरान सरदार बल्लभ भाई पटेल गांधी जी के संपर्क में आए और आगे गांधीजी के पक्के अनुयाई बन गए इस तरह गांधी जी का यह आंदोलन भी सफल रहा।
खिलाफत आंदोलन 1919
भारत में महात्मा गांधी का एक बड़ा राजनीतिक अभियान खिलाफत आंदोलन में भाग लेना था। खिलाफत आंदोलन कुछ भारतीय मुसलमानों द्वारा शुरू किया गया था जिसका उद्देश्य था तुर्की में इस्लाम के खलीफा सुल्तान की गद्दी और उसका साम्राज्य बचाना।
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1919 में खिलाफत सभाओं में महात्मा गांधी के भाषण शुरू हुए इन खिलाफत वादियो ने 17 अक्टूबर 1919 को खिलाफत दिवस के रूप में मनाया। गांधी जी ने भी इसका खूब प्रचार प्रसार किया बाद में 23 नवंबर 1919 को दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत कॉन्फ्रेंस हुई और इसके अध्यक्ष महात्मा गांधी ही थे।
इन सम्मेलनों में होने वाले आंदोलनों के लिए विस्तार से योजना की गई और सरकार द्वारा दी गई उपाधियां और सरकारी नौकरियों का बहिष्कार करने और टैक्स ना देने का भी विचार किया गया।
महात्मा गांधी के लिए खिलाफत आंदोलन भारतीय हिंदुओं और मुसलमानों को एकता में बांधने का एक बड़ा ही अच्छा अवसर था जोकि सैकड़ों वर्ष बाद आया है। इसलिए शीघ्र ही गांधीजी खिलाफत आंदोलन के एक प्रमुख नेता के रूप में उभर कर सामने आए। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
असहयोग आंदोलन 1920
देश में अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचार के विरोध के लिए महात्मा गांधी में 1 अगस्त 1920 को इस असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन के दौरान ही विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया ,वकीलों ने अदालत जाने से मना कर दिया ,और कई नगरों में मजदूर हड़ताल पर चले गए।
अगर सरकारी आंकड़ों की बात की जाए तो 1921 में 396 हड़ताल हुई और इन सभी हड़तालों में लगभग 600000 श्रमिक शामिल थे। गांधी जी ने अपने अहिंसात्मक मंच से स्वदेशी अपनाने का सभी को सुझाव दिया और विदेशी वस्तुओं का सब ने मिलकर बहिष्कार किया।
गांधी जी ने कहा कि अंग्रेजो के द्वारा बनाए गए कपड़े पहनने से अच्छा है हमारे अपने लोगों द्वारा हाथ से बनाई गई खादी पहना जाए। असहयोग आंदोलन के दौरान गांव और शहरों में बहुत ज्यादा लोग इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद असहयोग आंदोलन ने पहली बार अंग्रेजी शासन की नींव हिला रखी थी। बाद में फरवरी 1922 में गोरखपुर जिले के चोरा चोरी नामक जगह में किसानों के एक समूह ने एक पुलिस स्टेशन पर आक्रमण कर उसमें आग लगा दी ! जिससे कई पुलिसवाले उस घटना में मारे गए और इस हिंसा के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को तत्काल वापस ले लिया। यह आर्टिकल महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi पर लिखा गया है।
इसके बाद गांधी जी पर राजद्रोह के लिए मुकदमा चलाया गया और उन्हें 6 वर्ष की सजा सुनाई गई। बाद में 18 मार्च 1922 से लेकर उन्होंने केवल 2 वर्ष ही जेल में बिताए और फरवरी 1924 में उन्हें स्वास्थ्य खराब होने के कारण रिहा कर दिया गया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और नमक कानून तोड़ना 1930
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के पश्चात भी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संघर्ष चलता रहा और कांग्रेस ने भारत की स्वतंत्रता के लिए सरकार से कई मांगे की ! लेकिन अंग्रेज सरकार द्वारा सभी मांगों को ठुकरा दिया जाता ,और अंत में 1930 में कांग्रेस की कार्यकारिणी ने गांधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का अधिकार प्रदान किया।
इस सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत नमक कानून के उल्लंघन से हुई। महात्मा गांधी ने समुद्री तट के पास बसे गांव दांडी में जाकर नमक कानून को तोड़ा जिससे सारा देश जाग उठा। 1930 के मार्च में महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में शुरू हुआ राष्ट्रीय आंदोलन तेजी से बढ़ रहा था जिसकी शुरुआत सविनय अवज्ञा आंदोलन और दांडी मार्च से हुई इस प्रकार यह आंदोलन शुरू हुआ।
इस आंदोलन के प्रतिक्रिया स्वरूप सरकार ने नमक पर टैक्स लगा दिया जिससे उनके खजाने में बहुत अधिक इजाफा होने लगा और तो और अंग्रेजी सरकार के पास नमक बनाने का एकाधिकार भी था।
इसके कारण ही महात्मा गांधी यह एकाधिकार और अनावश्यक कानून को तोड़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 2 मार्च 1930 को वायसराय लार्ड इरविन को भारत की इस दशा के बारे में एक लंबा पत्र भी लिखा ! पर लॉर्ड इरविन ने गांधी जी को कोई जवाब नहीं दिया। ( महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi )
धीरे-धीरे महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह से पूरा का पूरा देश आंदोलित हो उठा और 12 मार्च को सुबह 6:00 बजे गांधी जी के आश्रम से 18 स्वयंसेवकों के साथ गांधी जी 241 मील दूर समुद्र के किनारे बसे दांडी की ओर बढ़ चले। इस वक्त गांधी जी ने सब देशवासियों से कहा कि वे अवैध रूप से नमक बनाएं , गांधीजी चाहते थे कि लोग खुलेआम नमक कानून तोड़ें और पुलिस कार्यवाही के सामने अहिंसा से विरोध प्रकट करें।
इस पर अंग्रेजों ने लाठियां भी चलाई जिस पर कई लोगों एवं स्वयंसेवकों की मृत्यु हुई और 320 से अधिक घायल हुए महात्मा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें यरवदा की जेल ले जाया गया। गांधी जी को जेल ले जाने के बाद और सविनय अवज्ञा के कारण भारत के लोगों ने ब्रिटिश सरकार की नाक में दम कर लिया।
सभी जेलों में बाढ़ सी आ गई लोग ज्यादा से ज्यादा अपनी गिरफ्तारियां दे रहे थे। इस आंदोलन की एक प्रमुख विशेषता थी महिलाओं की भागीदारी हजारों की संख्या में महिलाएं घरों से बाहर निकलकर इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग ले रही थी। मुस्लिम लीग भी भारत के सभी दलों और वर्गों के साथ इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे।
अब धीरे-धीरे अंग्रेजी सरकार भी गांधीजी और कांग्रेस के महत्व को समझने लगी थी उन्हें समझ आने लगा था कि अब इस आंदोलन को केवल ताकत के बल पर नहीं दबाया जा सकता। अतः संवैधानिक रूप से सुधार की बात सोची जाने लगी और इसी उद्देश्य से लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन हुआ !
परंतु कांग्रेस के विरोध के चलते वह असफल रहा इस तरह से बाध्य होकर अंग्रेज सरकार को महात्मा गांधी के साथ एक समझौता वार्ता करनी पड़ी जो गांधी इरविन पैक्ट के नाम से विख्यात हुआ।
भारत छोड़ो आंदोलन 1942
द्वितीय विश्व युद्ध 1939 के प्रारंभ में गांधीजी ने अंग्रेजो के लिए अहिंसात्मक नैतिक सहयोग देने का पक्ष लिया। किंतु कांग्रेस के दूसरे नेताओं ने युद्ध में जनता के प्रतिनिधियों से परामर्श लिए बिना इस फैसले को एक तरफा शामिल किए जाने का विरोध किया।
जिसके बाद कांग्रेस के सभी चयनित सदस्यों ने सामूहिक तौर पर अपने पद से इस्तीफा दे दिया। काफी लंबी वार्ता के बाद गांधी जी ने यह घोषणा की कि जब स्वयं भारत को ही आजादी नहीं दी जा रही है तब लोकतांत्रिक आजादी के लिए लड़ने पर भारत किसी भी युद्ध में भाग नहीं लेगा।
जैसे-जैसे द्वितीय विश्वयुद्ध बढ़ता गया आजादी के लिए महात्मा गांधी ने अपनी मांग को भारत छोड़ो आंदोलन नामक विधेयक का नाम देकर और अधिक तीव्र कर दिया। यह महात्मा गांधी और कांग्रेसियों का भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों पर लक्षित सर्वाधिक स्पष्ट विद्रोह था। महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi
आजादी के लिए संघर्ष में भारत छोड़ो आंदोलन सर्वाधिक शक्तिशाली आंदोलन बन गया जिसमें व्यापक हिंसा और गिरफ्तारियां हुई पुलिस की गोलियां खाकर हजारों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानी घायल हुए और मारे गए। और कई गिरफ्तार हुए इस दौरान महात्मा गांधी और उनके समर्थकों ने यह स्पष्ट कर दिया था ! कि वे ब्रिटिश गवर्नमेंट का समर्थन युद्ध में तब तक नहीं करेंगे जब तक भारत को तत्काल आजादी ना दे दी जाए।
महात्मा गांधी ने सभी भारतीयों और कांग्रेसियों से अहिंसा के साथ करो या मरो के द्वारा स्वतंत्रता के लिए अनुशासन बनाए रखने की प्रार्थना की। भारत छोड़ो आंदोलन के बढ़ने के साथ ही महात्मा गांधी और कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के सभी सदस्यों को अंग्रेजी सरकार द्वारा मुंबई में 9 अगस्त 1942 को गिरफ्तार कर लिया गया।
महात्मा गांधी को पुणे स्थित आगाखान महल में 2 साल तक बंदी बनाकर रखा गया। इस दौरान महात्मा गांधी की निजी जीवन में दो गहरे आघात लगे। एक तो उनका 50 साल पुराना सचिव महादेव देसाई दिल के दौरे से मर गए और 22 फरवरी 1944 को उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी का भी देहांत हो गया।
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कुछ दिनों बाद महात्मा गांधी को भी मलेरिया का भयंकर शिकार होना पड़ा जिस वजह से जरूरी उपचार के कारण 6 मई 1944 को द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के पूर्व ही इन्हें रिहा कर दिया गया।
अंग्रेजी सरकार महात्मा गांधी को जेल में दम तोड़ते हुए नहीं देखना चाहती थी यदि ऐसा होता तो देश में अंग्रेजी शासन के प्रति क्रोध और बढ़ जाता। हालांकि भारत छोड़ो आंदोलन को अपने उद्देश्य में पूरी तरह सफलता तो नहीं मिली लेकिन इस आंदोलन ने 1943 के अंत तक भारत देश को काफी हद तक संगठित कर दिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में ब्रिटिश सरकार ने भी यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि देश की सत्ता का हस्तांतरण भारतीयों के हाथों सौंप दिया जाएगा। और इसी कारण गांधी जी ने इस आंदोलन को बंद कर दिया और कांग्रेसी नेताओं सहित लगभग एक लाख राजनैतिक लोगों की रिहाई कर दी गई ( महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi )
भारत की स्वतंत्रता और विभाजन
स्वतंत्रता के लिए गांधी जी ऐसी किसी भी योजना के खिलाफ थे जो देश को दो अलग-अलग भागों में विभाजित कर दे। लेकिन देश में रह रहे हिंदुओं मुस्लिमों और सिखों का भारी बहुमत देश के बंटवारे के पक्ष में था। वहीं कांग्रेस नेताओं ने भी व्यापक स्तर पर होने वाले हिंदू मुस्लिम लड़ाई को रोकने के लिए बंटवारे की इस योजना को अपनी सहमति दे दी थी।
लेकिन कांग्रेस के नेता यह जानते थे कि महात्मा गांधी इस बंटवारे का विरोध करेंगे और उनकी सहमति के बिना कांग्रेस के लिए आगे बढ़ना असंभव था। क्योंकि पार्टी में गांधीजी का सहयोग और संपूर्ण देश में उनकी स्थिति काफी मजबूत है। अतः उनकी सहमति के बिना देश का बंटवारा नहीं किया जा सकता था।
गांधीजी के करीबी सहयोगी जनो ने बंटवारे को सर्वोत्तम उपाय के रूप में स्वीकार किया और सभी ने मिलकर गांधीजी को समझाने का प्रयास किया। और कहा गया की सांप्रदायिक युद्ध को रुकने का एक यही एक उपाय है।
अंत में मजबूर होकर महात्मा गांधी ने भी अपनी अनुमति दे दी। गांधी जी ने उत्तर भारत के साथ साथ बंगाल में भी मुस्लिम और हिंदू नेताओं को शांत रहने के लिए कहा।
इस दौरान भारत सरकार ने विभाजन परिषद द्वारा बनाए गए समझौते के अनुसार ₹55 करोड़ की राशि पाकिस्तान सरकार को देने से मना कर दिया। क्योंकि भारतीय सरकार का मानना था कि पाकिस्तान इस धन का उपयोग भारत के खिलाफ जंग छेड़ने में कर सकता है ( महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi )
वहीं दूसरी तरफ यह मांग उठने लगी कि सभी मुसलमानों को पाकिस्तान भेजा जाए और मुस्लिम और हिंदू नेताओं ने इस पर असंतोष व्यक्त किया !और आपस में एक दूसरे के साथ समझौता करने से मना कर दिया। इन सब परिस्थितियों के कारण ही गांधी जी ने दिल्ली में अपना आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।
जिसमें सभी से संप्रदायिक हिंसा को तत्काल समाप्त करने और भारत सरकार से पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान करने के लिए कहा गया। महात्मा गांधी को यह डर था कि पाकिस्तान को 55 करोड़ नहीं दिए जाने से वहां अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और अधिक बढ़ जाएगा। जिससे दोनों देशों की सीमाओं पर हिंसा फैल जाएगी।
इस आमरण अनशन के बाद गांधीजी और उनके जीवन भर साथ देने वाले सहयोगियों के साथ एक भावुक वार्ता के बाद गांधी जी की बात माननी पड़ी। और पाकिस्तान को 55 करोड़ का भुगतान कर दिया गया। वही हिंदू मुस्लिम और सिख नेताओं ने गांधी जी को यह विश्वास दिलाया कि हम हिंसा भूलकर शांति लाएंगे।
और इस प्रकार लिए गए निर्णय के बाद गांधी जी ने संतरे का जूस पी का अपना आमरण अनशन तोड़ा।
गांधी जी की हत्या
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी अपने दिल्ली के बिरला भवन में चहलकदमी कर रहे थे उसी दौरान नाथूराम गोडसे द्वारा उन्हें गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। गांधीजी के हत्यारे नाथूराम गोडसे एक हिंदू राष्ट्रवादी थे।
गांधी जी की हत्या के लिए नाथूराम गोडसे और उनके साथ षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को 14 नवंबर 1949 को फांसी की सजा दे दी गई।
गांधी जी की अंतिम यात्रा में देश के लाखों लोगों ने भाग लिया अंतिम संस्कार के बाद गांधी जी की अस्थि को रख दिया गया और देश के प्रति उनकी सेवाओं की याद में उनकी अस्थियों को संपूर्ण भारत ले जाया गया और कई जगह पर उसका विसर्जन किया गया। महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi
महात्मा गाँधी द्वारा लिखित पुस्तकें
गाँधी जी मुख्यतः गुजराती में ही लिखते थे लेकिन उसका हिंदी और अंग्रेजी अनुवाद जरूर करते या करवाते थे। उनके द्वारा लिखी गई मुख्य पुस्तकें ये हैं। महात्मा गांधी की जीवनी ! Mahatma Gandhi Biography in Hindi
- हिंद स्वराज
- दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास
- सत्य के प्रयोग (आत्मकथा)
- गीता माता
महात्मा गाँधी का जन्म कब हुआ
2 October 1869
गाँधीजी का जन्म कहाँ हुआ?
पोरबंदर , जोकि गुजरात का एक तटीय स्थान है।
महात्मा गांधी का जन्म दिवस कब मनाया जाता है?
2 अक्टूबर 1869 , इस दिन को अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
महात्मा गांधी का नारा क्या है?
भारत छोडो आंदोलन के समय उन्होंने करो या मरो का नारा दिया .
महात्मा गांधी का धर्म क्या है?
हिन्दू धर्म
महात्मा गांधी का पहला आंदोलन कौन था?
दक्षिण अफ्रीका में किए गए सत्याग्रह को प्रयोग के रूप में गांधी जी ने पहली बार बिहार के चंपारण में शुरू किया। यही इनका पहला आंदोलन था।
गांधी को राष्ट्रपिता क्यों कहा जाता है?
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है क्योंकि उन्होंने ही हमें आजादी दिलाई थी । वे आधुनिक भारत के निर्माता थे। सुभाष चंद्र बोष ने इन्हे पहली बार राष्ट्पिता के नाम से सम्बोधित किया।
गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि किसने दी थी?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
महात्मा गांधी को पहली बार राष्ट्रपिता किसने कहा था?
नेताजी सुभाष चंद्र बोस
महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु का नाम क्या था?
यहां पर उन्हें गोपाल कृष्ण गोखले जैसे अनुभवी राजनीतिक नेताओं का साथ प्राप्त हुआ। गोपाल कृष्ण गोखले को ही महात्मा गांधी का राजनैतिक गुरु माना जाता है।
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